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भगवान् महावीर
के प्रतिकार की शोध में हैं। उनके लिए श्राध्यात्मिक उपदेश की आवश्यकता है।
'अध्यात्म' शब्द 'अधि" और "आत्मा" इन दो शब्दों के के मेल से बना है । इसका अर्थ है आत्मा के शुद्ध स्वरूप को लक्ष्य करके उसके अनुसार धर्ताव करना । संसार के मुख्य दो तत्व जड़ और चेतन - जिनमें से एक को जाने बिना दूसरा नहीं जाना जा सकता है इस आध्यात्मिक विषय में पूर्णतया अपना स्थान रखते हैं ।
" श्रात्मा क्या चीज हैं ? आत्मा को सुख दुख का अनुभव कैसे होता है ? सुख दुम के अनुभव का कारण स्वयं श्रात्मा ही है या किसी अन्य के संसर्ग से आत्मा को सुख दुख का अनुभव होता है । श्रात्मा के साथ कर्म का सम्बन्ध कैसे होता है वह सम्वन्ध श्रादिमान है या अनादि १ यदि अनादि है तो इसका उच्छेद कैसे हो सकता है-कर्म के भेद प्रभेदों का क्या हिसाब है। कार्मिक वय, उदय और सत्ता कैसे नियम बद्ध है ?" अध्यात्म में इन सब बातों का भली प्रकार से विवेचन है |
इसके सिवा अध्यात्म विषय मे मुख्यतया संसार की असारता का हूबहू चित्र सींचा गया है । अध्यात्म शास्त्र का प्रधान उपदेश भिन्न भिन्न भावनाओं को स्पष्टतया ममता के ऊपर दबाव रखना है ।
समझा कर मोह
दुराग्रह का त्याग, तत्व श्रवरण की इच्छा, सन्तो का समागम साधुपुरुषों के प्रति प्रीति, तत्वों का श्रवण, मनन और अध्य - वसन, मिध्यादृष्टि का नाश, सम्यकदृष्टि का प्रकाश, क्रोध
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