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________________ ३६३ भगवान महावीर सासादन, मिश्र, अविरतसम्यकद्दष्टि, देशविरति,प्रमत्त, अप्रमत्त, अपूर्वकरण. अनिवृति, सूक्ष्मसंपराय, उपशान्त मोह, क्षीण मोह, सयोग केवली और प्रयोग केवली। मिथ्या दृष्टि गुणस्थान-इस बात को सब लोग समझते है कि प्रारम्भ में सब जीव अधोगति ही में होते हैं इसलिए जो जीव प्रथम श्रेणी में होते हैं वे मिध्यादृष्टि में होते हैं। मिथ्या दृष्टि का अर्थ है-वस्तुतत्व के यथार्थ ज्ञान का प्रभाव । इसी प्रथम श्रेणी से जीव आगे बढ़ते हैं। यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि इस दोप-युक्त प्रथम श्रेणी में भी ऐसा कौन मा गुण है जिससे इसकी गिनती भी गुण-श्रेणी में की गई है इसका समाधान यह है कि सूक्ष्मातिसूक्ष्म और नीची हद के जीवो में भी चेतना की कुछ मात्रा तो अवश्यमेव उज्ज्वल रहती है। इसी उज्ज्वलता के कारण मिथ्या दृष्टि की गणना भी 'गुण-श्रेणी' में की गई है। सासादनम-सम्यकदर्शन से गिरती हुई दशा का यह नाम है। सम्यकदर्शन प्राप्त होने के बाद क्रोधादि अति तीन कपायो का उदय हाने से जीव के गिरने का समय आता है यह गुणस्थान पतनावस्था का है मगर इसके पहले जीव को सम्यग्दर्शन हो गया होता है, इमलिए यह भी निश्चित हो जाता है कि वह कितने समय तक संसार में भ्रमण करेगा। मिश्र गुणस्थान की अवस्था में आत्मा के भाव बड़े ही विचित्र होते हैं इस गुणस्थानवाला सत्य मार्ग और असत्य 'भमादन' का अर्थ है अतिताम क्रोधादि कपाय । जो श्न कपायों से युक्त होता है उसी को 'सासादन' कहते हैं ।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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