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भगवान् महावीर
पर यदि उस घड़े को फोड़ कर हम उसी मिट्टी का बनाया हुप्रा कोई दूसरा पदार्थ किसी को दिखलाये तो वह कदापि उसको बड़ा नहीं कहेगा। उसी मिट्टी और द्रव्य के होते हुए भी उसको घड़ा न कहने का कारण यह है कि उसका आकार उल घड़े का मा नहीं है । इससे सिद्ध होता है कि घडा मिट्टी का एक आकार विशर है। मगर यह बात ध्यान में रखना चाहिये कि श्राकार विशप मिट्टी से सर्वथा भिन्न नहीं हो सकता, आकार परिवर्तित की हुई मिट्टी ही जब घड़ा, सिकोरा, मटका आदि नानी ने सम्बोधित होती है, तो ऐसी स्थिति में ये आकार मिट्टी से सर्वथा भिन्न नहीं कहे जा सस्त। इससे साफ जाहिर है कि घड़े का श्राकार और मिट्टी ये दोनों घडे के स्वरूप हैं। अब देखना यह है कि इन दोनों रूपों में विनाशी रूप कौन सा है और ध्रुव कौन सा ? यह प्रत्यक्ष वष्टिगोचर होता है कि घड़ें का आकार स्वरूप विनाशी है । क्योंकि घड़ा फूट जाता है-उसका रूप नष्ट हो जाता है । पर घड का जो दूसरा स्वरूप मिट्टी है वह अविनाशी है क्योंकि उसका नाश होता ही नहीं, उसके कई पदार्थ बनत और बिगड़त रहते हैं।
इतने विवेचन से हम इस बात को स्पष्ट समझ सकते हैं कि घड़े का एक स्वरूप विनाशी है और दूसरा ध्रुव । इसी बात को यदि हम या कहे कि विनाशी रूप से घड़ा अनित्य है, और ध्रुव रूप से नित्य है तो कोई अनुचित न होगा, इसी तरह एक ही वस्तु में नित्यता और अनित्यता सिद्ध करनेवाले सिद्धान्त ही को स्याद्वाट कहते हैं।
स्याहाद की सीमा केवल नित्य और अनित्य इन्हीं दो वातों