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________________ भगवान् महावीर ३१६ से बहुत ऊपर उठ गये हैं। महावीर भली प्रकार इस बात को जानते थे कि साधारण मनुष्यजाति इस उज्वल रूप को ग्रहणः करने में असमर्थ है, वह इस आदर्श को अमल में ला नहीं सकती और इसीलिए उन्होंने साधारण गृहस्थों के लिए उसका उतना ही अश रक्खा जिसका वे स्वभावतयः ही पालन करसकें और वहां से क्रमशः अपनी उन्नति करते हुए अपने मजिले मकसूद पर पहुंच जायं । किस सीमा तक मनुष्य अपनी हिंसक-प्रवृत्ति पर अधिकार रख सकता है और उस सीमा से अधिक कन्ट्रोल अनविकार अवस्था में रखने से किस प्रकार उसका नैतिक अध:पात हो जाता है एव किस सीमा पर जाकर उसकी यह हिंसक प्रवृत्ति क्रूर रूप धारण कर लेती है और उसपर कैसे संयम किया जा सकता है आदि सब बातो का समाधान जैन-अहिंसा का सूक्ष्म अध्ययन करने से हो सकता है। यह विषय ऐसा गहन है कि संक्षिप्त में इसको बतलाना असम्भव है। हमारा मतलब केवल इतना ही है कि महावीर की जैन-अहिंसा मनोविज्ञान की कसौटी पर भी बिल्कुल खरी उतरती है । जो जिज्ञासु तुलनात्मक ढङ्ग से इसका विस्तृत अध्ययन करना चाहे उन्हें आधुनिक महात्माओ की अंहिसा और जैन-अहिसा का सूक्ष्म-दृष्टि से अवश्य अध्ययन करना चाहिए।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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