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________________ ३१५ भगवान् महावीर देवता हो जाता है । पहले पथ के पथिक यूरोप के आधुनिक गजनीतिज्ञ हैं और दूसरे के टालस्टाय, रस्किन और महात्मा गांधी के समान मानवातीत ( Superhuman ) श्रेणी के महापुरुष । इन आधुनिक महापुरुषां ने अहिंसा आदि का बहुत ही उज्वल स्वरूप मानवजाति के सम्मुख रक्खा है। यह उज्वलम्प इतना सुन्दर है कि यदि मनुष्यजाति में इसका समप्टि रूप से प्रचार हो जाय तो यह निश्चय है कि संसार स्वर्ग हो जाय और मनुष्य देवता । पर हमारी नाकिल राय में यह जंचता है कि मनुष्यत्व का इतना उज्वल सौन्दर्य देखने के लिए मनुष्यजाति तैयार नहीं । सम्भव है इस स्थान पर हमारा कई विद्वानों से मतानैक्य हो जाय पर हम तो नम्रता पूर्वक यही कहेंगे कि कुछ मानवातीत महापुरुषों को छोड़ कर सारी मानवजाति के लिए यह रूप व्यवहारिक नहीं हो सकता । मनुष्य को प्रकृति में जो विकृति छिपी हुई है वह इसे सफल नहीं होने दे सकती और इसीलिए मनोविज्ञान की दृष्टि से इसे हम कुछ अव्यवहारिक भी कहे तो श्रनुचित न होगा । पर भगवान् महावीर की हिंसा में यह दोप या अतिरेक कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होता । इसमे यह न समझना चाहिए कि महावीर ने अहिंसा का ऐसा उज्वल रूप निर्मित ही नही किया, उन्होंने इससे भी बहुत ऊंचे और महत रूप की रचना की है । पर वह रूप केवल उन्हीं थोड़े से महान पुरुषो के लिए क्या है जो उसके बिल्कुल योग्य है, जो संसार और गार्हस्थ्य से 'अपना सम्बन्ध छोड़ चुके हैं। और जो साधारण मनुष्य - प्रकृति
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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