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________________ भगवान महावीर ३११ अवश्य है कि मनुष्य-हृदय की यह विकृति जब अपनी मीमा से वाहर होने लगती है,जब यह व्यष्टिगत से समष्टिगत होने लगती है तब कोई महापुरुप अवतीर्ण होकर उसको पुनः सीमावद्ध कर देते हैं। पर यह तो कभी सम्भव नहीं कि मनुष्य-प्रकृति की इस कुप्रवृति को विल्कुल ही नष्ट कर दिया जाय । आज तक ससार के किसी भी अतीत इतिहास में इस प्रकार का दृश्य देखने को नहीं मिलता। जिस प्रकार शुद्ध ऑक्सिजन वायु से वायुमण्डल का कार्य नहीं चल सकता उसी प्रकार केवल आदर्श से भी समाज का व्यवहार वरावर नहीं चल सकता। बिना व्यवहार की उचित मात्रा के मिलाए वह समष्टिगत उपयोगी नहीं हो सकता। अतएव सिद्ध हुआ कि अहिंसा. ज्ञमा, दया आदि के भाव उसी सीमा तक मनुष्य समाज के लिए उपयोगी और अमलयाफ्ता हो सकते हैं जब तक मनोविज्ञान से उनका हढ़ सन्बन्ध बना रहता है। ___ आधुनिक संसार के अन्तर्गत दो परस्पर विरुद्ध मार्ग एक साथ प्रचलित हो रहे हैं। एक मार्ग तो अहिंसा. क्षमा. दया आदि को केवल मनुष्य के काल्पनिक भाव वतलाना हुआ एवं उनका मखौल उड़ाता हुआ, हिंसा, युद्ध, वन्धु-विद्रोह आदि का समर्थन कर “जिसकी लाठी उसकी भैंस" वाली कहावत का अनुगामी हो रहा है। उसका आदर्श इहलौकिक सुख की पूर्णता ही में समाप्त होता है । और दूसरा पक्ष ऐसा है जो मनुष्य जाति को विल्कुल शुद्ध आदर्श का सन्देशा देना चाहता है। वह मनुष्य जाति को उस ऊंचे आदर्श पर ले जाकर स्थित करना चाहता है जिस स्थान पर जाकर मनुष्य मनुष्य नहीं रह जाता
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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