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________________ ३०५ गु भगवान् महावीर सम्बन्धी सम्पूर्ण सत्ता उसके हाथ में सौप कर युद्ध को घोपणा कर दी, सेनाध्यक्ष “आभू” ने उसी दम सैनिक सङ्गठन कर लडाई के मैदान में पडाव डाल दिया। दूसरे दिन प्रातः काल युद्ध प्रारम्भ होनेवाला था। पहले दिन सेनाध्यक्ष को अपनी सेना की व्यवस्था करते करते संध्या हो गई। यह व्रतधारी श्रावक था। दोनों वक्त प्रतिक्रमण करने का इसे नियम था । सध्या होते ही प्रतिक्रमण का समय समीप जान इसने कही एकान्त मे जाकर प्रतिक्रमण करने का निश्चय किया । परन्तु उसी समय उसे मालूम हुआ कि यदि वह युद्धस्थल को छोड फर बाहर जायगा तो सेना में विश्टखला होने की संभावना है । यह मालूम होते ही उसने अन्यत्र जाने का विचार छोड़ दिया और हाथी के हौदे पर हो बैठे २ प्रतिक्रमण प्रारम्भ कर दिया । जिस समय वह प्रतिक्रमण में आये हुए "जे में जीवा विराहिया - एगिदिया वैगिदिया" इत्यादि शब्दों का रचा रण कर रहा था । उसी समय किसी सैनिक ने इन शब्दो को सुन लिया । उस सैनिक ने एक दूसरे सरदार के पास जाकर कहा - देखिये साहब ! हमारे सेनापति साहव इस युद्ध के मैदान में जहाँ पर की "मार मार" की पुकार और शस्त्रों को वन खनाहट के सिवाय कुछ भी सुनाई नही पड़ता है- "एगि दिया गिदिया" कर रहे हैं। नरम नरम हलवे के खानेवाले ये श्रावक साहब क्या बहादुरी बतलायेंगे ? शनैः शनै. यह बात रानी के कानो तक पहुँच गई, जिससे वह पड़ो चिन्तित हो गई, पर इस समय और कोई दूसरा उपाय न था इस कारण भविष्य पर सब भार छोड़ कर वह चुप हो गई । दूसरे २०
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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