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भगवान महावीर
रूपवती पत्नी है। यदि कोई दुष्ट विकारया सत्ता के वशीभूत होकर दुष्ट भावना से उस स्त्री पर अत्याचार करने की कोशिश करता है तो उस गृहस्थ का परम कर्तव्य होगा कि वह अपनी पूर्ण शक्ति के साथ उस दुष्ट से अपनी स्त्री की रक्षा करे, यदि ऐसे कठिन समय में उसके धर्म की रक्षा करने के निमित्त उसे उस आततायी की हत्या भी कर देना पड़े तो उसके व्रत में कोई भी वाचा नहीं पड़ सकती । पर श यह है कि हत्या करते समय भी उसकी वृत्तियां शुद्ध और पवित्र हों। यदि ऐसे समय में अहिसा के वशीभूत होकर वह उस आततायी का प्रतिकार करने में हिचकिचाता है तो उसका भयकर नैतिक अधःपात हो जाता है जो कि हिंसा का जनक है। क्योंकि इसमे आत्मा की उम्र वृत्ति का घात हो जाता है। अहिंसा के उपासक के लिए अपनी स्वार्थवृत्ति के निमित्त की जाने वाली स्थूल या सकल्पी हिंसा का पूर्ण त्याग करना, अत्यन्त आवश्यक है जो लोग अपनी क्षुद्र वासनाओं की तृप्ति के निमित्त दूसरे जीवो को लेश पहुँचाते हैं-उनका हनन करते हैं-वे कदापि अहिंसा धर्म का पालन नहीं कर सकते । अहिंसक गृहस्यों के लिए वही हिंसा कर्तव्य का रूप धारण कर सकती है जो देश जाति अथवा श्रात्म-रक्षा के निमित्त शुद्ध मावनाओं को रखते हुए मजबूरन की गई हो। इतने विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा प्रत पालन करते हुए भी मनुष्य युद्ध कर सकता है, आत्म-रक्षा के निमित्त हिंसक पशुओं का वध कर सकता है, यदि ऐसे समय में वह अहिंसा धर्म की आड़ लेता है तो अपने कर्तव्य से च्युत होता है। इसी बात को और भी स्पष्ट करने के निमित्त हम