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________________ भगवान् महावोर ३०२ जान और स्थूल हिंसा का त्यागी हो सकता है। शेष हिंसाएँ गृहस्थ के लिये क्षम्य होती हैं । गृह कार्य में होने वाली श्रारम्भी हिंसा, व्यापार में होने वाली व्यवहारिक हिंसा तथा श्रात्म-रक्षा के निमित्त होने वाली विरोधी हिंसा में यदि उसकी मनोभावनाएं शुद्ध और पवित्र हैं तो वह दोष का भागी नहीं हो सकता । वल्कि कभी कभी तो इस प्रकार की हिंसा जैन-दृष्टि से भी कर्तव्य का रूप धारण कर लेती है । मान लीजिए एक राजा है, वह न्यायपूर्वक अपनी प्रजा का पालन कर रहा है । प्रजा राजा से खुश है और राजा प्रजा से खुश है। ऐसी हालत में यदि कोई अत्याचारी आततायी आकर उसके शान्तिमय राज्य पर आक्रमण करता है अथवा उसकी शान्ति में वाधा डालता है तो उस राजा का कर्तव्य होगा कि देश की शान्ति रक्षा के निमित्त वह पूरी शक्ति के साथ उस आततायी का सामना करे, उस समय वह युद्ध में होने वाली हिंसा की परवाह न करे । इतना अवश्य है कि वह अपने भावों में हिंसक प्रवृति को प्रविष्ट न होने दे । उस युद्ध के समय भी वह कीचड़ के कमल की तरह अपने को निर्लिप्त रक्खे -- उस भयंकर मार काट में भी वह आततायी के कल्याण ही की चिन्ता करे । यदि शुद्ध और सात्विक मनोभावों के रखते हुए वह हिंसाकाण्ड भी करता है तो हिंसा के पाप का भागी नहीं गिना जा सकता । विपरीत -इसके यदि ऐसे भयंकर समय में वह अहिंसा का नाम लेकर हाथ पर हाथ धर कर कायर की तरह बैठ जाता है, तो अपने राज्य धर्म से एवं मनुष्यत्व से च्युत होता है। इसी प्रकार मान लीजिए कोई गृहस्थ है उसके घर में एक कुलीन, साध्वी, और
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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