________________
•भगवान महावीर
२८० वासवदत्ता के साथ बहुत समय तक विलास कर एक दिन उदचनने संसार से विरक्तहो वीर प्रभु के पास से दीना ग्रहण कर लो।
___ एक दिन "अभय कुमार" ने अपने पिता श्रेणिक राजा से दीक्षा लेने की श्राजा मांगी। इसमे श्रेणिक बड़े दुखी हुए क्योंकि वे अभय कुमार को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। पर बुद्विमान् अभय कुमार ने उनको कई प्रकार से समन्त्र चुझा कर शान्त किया और दीक्षा लेने की प्राना ले ली। तदन्तर वीर प्रभु के पास जाकर उन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली । दीक्षा लेने के पूर्व उन्होंने वीर प्रभु की बड़ी हो तत्वपूर्ण न्तुति की थी। उसका सार हम नीचे देते हैं।
"हे स्वामी ! यदि जीव को हम एकान्त-नित्य-मानें तो कृत लाश और अकृतागम का दोष आता है। इसी प्रकार यदि जोव को एकान्त-अनित्य माने तो भी · पराक्त दोनों दोप आते हैं। यदि आत्मा को एकान्त-अनित्य मानें तो सुख और दुख का भोग नहीं रह जाता। पुण्य और पाप एवं वन्ध तथा मोक्ष जीव को एकान्त नित्य-और एकान्त अनित्य मानने वाले दर्शन में कभी सम्भव नहीं हो सकते । इससे हे भगवन् ! तुम्हारे -कथनानुसार वस्तु का नित्यानित्य स्वरूप ही सब दृष्टियो से ठीक
और दोष रहित हैं । गुड़ क्फ को उत्पन्न करता है और सोंठ पित्त को पैदा करती है। पर यदि ये दोनों औषधियाँ मिश्रित
हो तो कुछ दोष उत्पन्न नहीं हो सकता। असत् प्रमाण की -प्रसिद्धि के लिये "दो विरुद्ध भाव एक स्थान पर नहीं हो सकते" यह कहना मिथ्या है। क्योंकि चितकबरी वस्त में