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भगवान महावीर
विरुद्ध वर्णों का योग एक स्थान पर दिखलाई देता है । "विज्ञान का एक आकार विविध श्राकारों के संयोग से उत्पन्न हुश्रा है" इस प्रकार मानने वाला बौद्ध-दर्शन अनेकान्तदर्शन का खण्डन नहीं कर सकता । पृथ्वी को परमाणु स्वरूप से नित्य और स्थूल रूप से अनित्य मानने वाला तथा द्रव्यत्व, पृथ्वीव आदि गुणो को सामान्य और विशेष रूप से स्वीकार करने वाला वैशेषिक दर्शन भी उसका खण्डन नहीं कर सकता । इसी प्रकार सत्व, रज, तम, श्रादि विरुद्ध गुणों से आत्मा को गुंथी हुई मानने वाला सांख्यदर्शन भी इसका खण्डन नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त चार्वाक का खण्डन और मण्डन देखने की तो आवश्यकता ही नहीं है। क्योंकि उसकी बुद्धि तो परलोक, आत्मा और मोक्ष के सम्बन्ध में मूढ़ हो गई है। इससे हे स्वामी ! उत्पाद, व्यय ओर ध्रौव्य के अनुसार सिद्ध को हुई वस्तु मे ही वस्तुत्र रह सकता है, आप का यह कथन बिल्कुल मान्य है।"
अभय कुमार के दीक्षा लिए पश्चात श्रेणिकपुत्र कुणिक ने पड़यन्त्र करके श्रेणिक को जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन बैठा । अत्यन्त कष्टो से त्रसित हो श्रेणिक ने एक दिन आत्म-हत्या करली। तदनन्तर कुछ समय पश्चात कुणिक का वैशालीपति चेटक के साथ बडा ही भयङ्कर युद्ध हुआ। जिसमें कुछ दिनों तक तो चेटक की विजय होती रही। पर अन्त में कुणिक ने उनको पराजित कर वैशाली की दुर्गति करदी। तत्पश्वात दिग्विजय करने की आशा से कुणिक सेना सहित निकला।