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भगगन महावीर
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एक समय एक व्यापारी "रत्न कम्वल" लेकर श्रेणिक राजा के पास बेचने आया । पर उनका मूल्य बहुत होने से श्रेणिक ने उन्हें न खरीदा । तब वह फिरता फिरता शालिभद्र के घर गया । वहाँ भद्राने उसको मुंह मांगा मूल्य देकर सत्र. कम्वल खरीद लिये । इधर रानी चेलना ने श्रेणिक से कहा कि मेरे लिए एक रत्न कम्बल सगवादी । तब श्रेणिक ने उस व्यापारी को बुलवाया । व्यापारी ने आ कर कहा" राजन् ! रत्न कम्वल तो सब भद्रा सेठानी ने खरीद लिये हैं ।" यह सुन श्रेणिक राजा ने एक चतुर मनुष्य को उचित मूल्य देकर ग्न कम्वल लेने के लिए भद्रा के पास भेजा । उसने भद्रा से आकर कम्बल माँगा, पर भद्रा ने कहा कि मैंने उन कचलो के टुकड़े कर शालिभद्र की स्त्रियो को पैर पोंछने के लिये दे दिये हैं, यदि श्रेणिक राजा को उन जीर्ण कम्बलों की आवश्यकता हो तो ले जाओ । वह बात ज्यों की त्यों आकर उस व्यक्ति ने राजा श्रेणिक को कही । यह सुन चेलना ने कहा- देखो तुम्हारे सें और उस वणिक में पीतल और सोने के समान अन्तर है । तव राजा ने कौतुक वरा होकर शालिभद्र को बुलाने के लिये उसी पुरुष को भेजा । लेकिन उसके उत्तर में भद्रा ने राजा के पास
कर कहा - " मेरा पुत्र कभी घर के बाहर नहीं निकलता इसलिये अच्छा हो यदि आपही मेरे घर पधारने को कृपा करे ।" श्रेणिक ने, कौतुक वश हो वैसा ही करना स्वीकार किया । तब भद्रा ने अपने महल से लेकर राजमहल तक मार्ग को विचित्र वस्त्र, और - माणिक्यादि से सुशोभित करवा दिया । उस सुंदर शोभा को चर्यपूर्वक देखता हुआ श्रेणिक : शालिभद्र के घर आया ।