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भगवान् महावीर
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के कारण साल, महासाल, गागली आदि को केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। जब वे लोग प्रभु के पास गये तो प्रभ को प्रदिक्षण दे, गौतम स्वामी को प्रणाम कर और तीर्थ को नमकर पर्षदा में जाने लगे। तव गौतम स्वामी ने उनको कहा-प्रभु की चन्दना करो । प्रभु ने कहा-गौतम । केवली की आशातना मत करो। तत्काल गौतम ने अपने किये का पश्चाताप कर उनसे क्षमा मांगी।
पश्चात् गौतम दुखी होकर सोचने लगे-क्या मुझे केवल ज्ञान प्राप्त न होगा, क्या मैं इस भव में सिद्ध न हो सकूँगा ?" वे ऐसा विचार कर ही रहे थे कि वीर प्रभु ने अपनी देशना में कहा कि जो अपनी लब्धि के द्वारा अष्टापद पर जाकर एक रात्रि वहाँ रहे, वह इसी भव में सिद्धि को प्राप्त हो।" यह सुनते ही गौतम स्वामी प्रभु की आज्ञा लेकर वहाँ जाने के लिए निकल पड़े। वहाँ की यात्रा कर जब वे वापिस लौट रहे थे तब मार्ग में पाँच सौ मुनि उनको मिले उन सबों ने गौतम स्वामी के शिष्य होना चाहा । पर गौतम ने कहा कि सर्वज्ञ परमेश्वर
जो भगवान महावीर हैं वे ही तुम्हारे गुरु हो ओ। यह सुन “उन मुनियों ने सोचा कि “जगद्गुरु श्री वीर परमात्मा हमें गुरु रूप में मिले हैं, इसी प्रकार पिता के समान ये मुनि हमें वोध करने के लिये मिले हैं सचमुच हम बड़े पुण्यवान हैं।" इस प्रकार शुभ भावनाओं का उदय होने से उन पाँच सौं ही मुनियों को कैवल्य की प्राप्ति हो गई। समवशरण में आकर वे वीर-प्रभु की प्रदिक्षण कर केवलियों की सभा की ओर चले। यह देख गौतम स्वामी बोले “वीर प्रभु की वन्दना करो।" यह सुन प्रभु