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भगवान् महावीर "कालसौकरिक" ने कहा-इस काम में क्या दोष है। जिससे अनेक मनुष्यों के जीवन की रक्षा होती हैं, ऐसे कसाई के धन्धे को मैं कदापि नहीं छोड़ सकता। "यह सुन करके क्रोधित हो राजा ने कहा:-देखें तू अब किस प्रकार यह धन्धा कर लेता है ? यह कह कर श्रेणिक ने उसे अन्धेरे कूप में कैद कर दिया ।" तत्पश्चात् वीर प्रभु के पास आकर उसने कहा---
श्रेणिक-भगवन मैने "कालसौकरिक" से एक दिन और रात्रि के लिये कसाई का काम छुड़वा दिया है ।" यह सुन कर प्रभु ने कहा
प्रभु-हे राजन् । उसने उस अन्ध कूप में भी पांच सौ भैंस मिट्टी के बना बना कर मारे है ।" उसी समय श्रेणिक राजा ने वहां जाकर देखा तो सचमुच उसे वही दृश्य दिखलाई दिया । उससे उसे बड़ा अनुताप हुआ और वह अपने पूर्व उपार्जित कर्मों को धिक्कारने लगा।"
श्रीवीर प्रभु वहाँ से विहार कर पृष्ट चम्पा नगरी को पधारे। वहाँ केराजा "साल" और उनके लघु भ्राता "महासाल" प्रभु की वन्दना करने के निमित्त वहां आये । प्रभु की देशना सुन कर उन्हें संसार से वैराग्य हो आया। इससे उन्होंने अपनी वहन यशोमती के पुत्र “गागजी" को राज्य का भार दे दीक्षा ग्रहण करली। कुछ दिनों पश्चात् वीर प्रभु की आज्ञा ले साल और महा-साल के साथ गौतम खामी पुनः पृष्ठ चम्पा को गये । वहां के राजा गागली ने उनकी देशना सुन कर, अपने पुत्र को राज्य गद्दी दे दीक्षा ग्रहण कर ली। गौतम खामी तब वहाँ से चलकर वीर प्रभु के पास आने लगे, मार्ग ही मे शुभ भावनाओ