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भगवान महावीर
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श्रेणिक ने तब प्रभु को नमस्कार कर कहा-भगवन् । आपके समान जगदुद्धारक स्वामी के होते हुए भी मेरी गति नरक मे क्यों कर होगी ?" ___“वीर प्रभु ने कहा-राजन् तेने पूर्व में नरक का आयु उपार्जन कर रक्खा है इस लिये तू अवश्य नरक में जायगा। क्योंकि पूर्व के बँधे हुए शुभ और अशुभ कर्म के फल अवश्य भोगने ही पड़ते हैं उसको कोई अन्यथा नहीं कर सकता।" . श्रेणिक ने कहा हे नाथ ! क्या कोई ऐसा भी उपाय है, "जिससे इस भयङ्कर गति से मेरी रक्षा हो जाय !" ।
प्रभु ने कहा-हे राजन् । यदि तू तेरे नगर में बसने वाली कपिला ब्राह्मणी के पास से सहर्ष साधुओं को भिक्षा दिला दे और "कालसौकरिक" नामक कसाई से जीवहिंसा छुड़वा,दे तो नरक से तेरा छुटकारा हो सकता है, अन्यथा नहीं।" इस प्रकार प्रभु के वचनों को हृदय में धारण कर राजा श्रेणिक अपने स्थान पर गया।
श्रेणिक ने वहाँ जाकर पहिले कपिला ब्राह्मणी को बुलवाई और कहा-"भद्रे तू श्रद्धापूर्वक साधुओं को भिक्षा दे, मैं तुझे धन और सम्पत्ति से निहाल कर दूंगा।" ___ कपिला ने कहा यदि तुम मुझे सोने मे भी गाड़ दो या सारा राज्य ही मेरे सुपुर्द कर दो, तो भी मैं यह अकृत्य कदापि नहीं कर सकती।"
तत्पश्चात् राजाने "कालसौकरिक" को बुलाया और कहायदि तू इस कसाई के धन्धे को छोड़ दे तो मैं तुझे बहुत सा प्रव्य देकर निहाल कर दूं। तुझे इसमें कुछ हानि भी नहीं, क्योंकि द्रव्य की ही इच्छा से तो तू यह कार्य करता है।"