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________________ भगवान् महावीर २६६ का काम किया । वे सोचने लगे- “मेरे उन अकृतज्ञ मंत्रियों को धिक्कार है । आज तक मैंने उनके श्रादर में किसी प्रकार की कमी नही की, इस कृतज्ञता का उन्होंने यही बदला दिया । यदि इस समय में वहां होता तो उनको अत्यन्त कठिन सजा देता ।" ऐसे संकल्प विकल्पों से व्याकुल होकर प्रसन्नचन्द्र मुनि अपने प्रहण किये हुए व्रत को भूल गये । और अपने को राजा ही समझ कर वे मन ही मन मंत्रियों के साथ युद्ध करके लगे । इतने में श्रेणिक राजा वहां आया और उसने विनय पूर्वक उनकी वन्दना की, वहां से चल कर वह वोर प्रभु के समीप आया और वन्दना कर उसने पूछा "हे प्रभु मैंने प्रसन्नचन्द्र मुनि को उनकी पूर्ण ध्यानावस्था वन्दना की है । भगवन्। मैं यह जानना चाहता हूँ कि यदि वे उसी स्थिति में मृत्यु को प्राप्त हो तो कौनसी गति में जायगे । प्रभु ने कहा "सातवें नरक में जायेंगे" यह सुन कर श्रेणिक बड़े विचार मे पड़ गया, क्योकि उसे यह मालूम था कि मुनि नरक गामी नहीं होते, अतएव उसे अपने कानों पर विश्वास न हुआ और उसने फिर दूसरी बार पूछा "भगवन् । यदि प्रसन्नचन्द्र मुनि इस समय मृत्यु पा जायं तो कौनसी गति में जायेंगे ।" प्रभु ने कहा - सर्वार्थ सिद्धि विमान में जायगे । श्रेणिक ने पूछा भगवन् आपने एक ही क्षण के अन्तर पर दो बातें एक दूसरी से विपरीत कहीं इसका क्या कारण हैं प्रभु ने कहा -- ध्यान के भेद में प्रसन्नचन्द्र मुनि की अवस्था दो प्रकार की हो गई है । इसी से मैंने ऐसी बात कही है । पहले दुर्मुख के वचनों से प्रसन्नमुनि अत्यन्त क्रोधित हो गये थे । और अपने मन्त्रियों और सामन्तो से मन ही मन युद्ध 1
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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