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भगवान महावीर
MEपुरी में आये। यहां के कोष्टक नामक उद्यान में देवताओं ने उनका समवशरण बनाया। इसी स्थान पर "जोलेश्या" के पल से अपने विरोधियों का नाश करने वाला "श्रष्टांगनिमित्त" के जान से लोगों के मन को यात कहने वाला और अपने आपको "जिन" कहने वाला गौगाला पहले ही में थाया हुआ था। यह "हालाहन्ना" नामक फिसी कुम्हार की दुकान में उतरा था। अईन्त के समान उसकी ख्याति को सुन कर सैकड़ो मुग्ध लोग नम पाम 'प्राने और उसके मत को प्रहण करते थे। एक बार जब गौतमयामी प्रमु फी भासा में यहार लेने के निमित्त नगर में गये तय वहां उन्होंने सुना कि "यहां पर गौशाला पाईन्त और मर्वज्ञ के नाम से विख्यान होफर 'प्राया हुआ है। इस बात को सुन कर गौतमस्वामी गंद पाने इए प्रभु के पास प्राये। उन्होंने सब लोगों के सम्मुख स्वच्छ बुद्धि में पूछा भगवन । इस नगरी के लोग गौशाला को सर्वश कइने हैं। क्या यह बात सत्य है ? "प्रभु ने कहा" मंग्वली का पुत्र गौशाला है। अजिन होते हुए भी यह अपने को जिन मानता है। गौतम। मैंने ही उसको दीना दी है। शिक्षा मो इसको मैने दी दी है। पर पीछे में मिथ्याची होकर यह मुम में अलग हो गया है । यह सर्वज्ञ नहीं है।
एक बार प्रभु के शिष्य श्री "यानन्द मुनि" आहार लेने के निमित्त नगरी में गये, मार्ग में नन्हें गौशला ने घुला फर कहा"अरे आनन्द । तेरा धर्माचार्य लोगों में अपना मत्कार करवाने की इच्छा में समा के बीच में अपनी प्रशंसा और मेरी निन्दा करता है और कहता है कि यह गौशाला मंखली पुत्र है।