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भगवान् महावीर
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अर्हन्त तथा सर्वज्ञ नहीं । पर वह अब तक शत्रु के दहन करने में समर्थ मेरो तेजोलेश्या को नहीं जानता है। तू निश्चय रख मैं उसे परिवार समेत नष्ट कर दूंगा । हां यदि तैने मेरा विरोध न किया तो तुझे छोड़ दूंगा ।
आनन्द मुनि ने यह बात प्रभु के आगे आकर कही । फिर उन्होंने शकित होकर पूछा "स्वामी ! गौशाला ने भस्म कर देने की बात कही है । वह वास्तविक है या उसका प्रलाप मात्र है ? प्रभु ने कहा - " अर्हन्त के सिवाय दूसरे को भस्म कर देने मे वह समर्थ है । इसलिये आनन्द ! तू गौतम वगैरह सब मुनियों को जाकर कहदे कि उसके साथ कोई भाषण न करे ।" आनन्द मुनि ने सब लोगों को यह बात जाकर कह दी। इतने ही मे गौशाला वहाँ आया और उसने प्रभु को देख कर कहा"ओ काश्यप । तू मुझे मंखली पुत्र और अपना शिष्य बतलाता है । यह बिल्कुल मिथ्या है। क्योंकि तेरा शिष्य गौशाला तो शुककुल का था । वह तो धर्म ध्यान से मृत्यु पाकर देवगति में उत्पन्न हो गया है उसके शरीर को उपसर्ग और परिषह सहने में समर्थ जान - मैंने अपनी आत्मा को अपने शरीर से निकाल कर उसमें डाल दिया है । मेरा नाम तो "उदाय मुनि " है । मुझे बिना जाने ही तू अपना शिष्य किस महावीर ने कहा - " पुलिस की निगाह में पड़ा छिपने का स्थान न पाकर जिस प्रकार रुई,
प्रकार कहता है ?
हुआ चोर कहीं सन, या ऊन से
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ही अपने शरीर को ढंकने की चेष्टा करता है उसी प्रकार तू भी क्यों असत्य बोल कर अपने को धोखा देता है ।" प्रभु इन वचनों को सुन गौशाला बोला “अरे काश्यप ! आज तू
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