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भगवान् महावीर
.२६० दिन प्रभु के समवशरण में गया । प्रभु ने दर्शन दिये के पश्चात् कहा-हे शब्दालपुत्र । कल किसी ने आकर तुझे कहा था कि "कल प्रातःकाल सर्वज्ञ प्रभु यहां पर आएगे, इस पर तेने गौशाला के आने का अनुमान किया था, " यह सुन उस कुम्हार ने सोचा कि "अहो, ये तो सर्वज्ञ महाब्राह्मण अर्हन्त श्रीवीर प्रमु हैं। ऐसा सोच उसने पुनः उनको नमस्कार किया। पश्चात प्रभु ने बड़े हो मधुर शब्दों में उसे "नियतिवाद" की कमजोरियां बतला कर उसे अपना अनुयायी बना लिया । उसने उसी समय प्रभु से श्रावकधर्म को ग्रहण किया।
जव गौशाला ने यह घटना सुनी तो वह शब्दालपुत्र को पुनः अपने मत में मिलाने के निमित्त वहां आया। पर जव शब्दालपुत्र ने उसे दृष्टि से भी मान न दिया तो लाचार होकर वह वहां से वापस चला गया।
यहां से चल कर प्रमु राजगृह नगर के बाहर स्थित गुणशील नामक चैत्य में पधारे ! उस नगर मे "महाशतक" नामक चौबीस करोड़ स्वर्ण मुद्रांओं का अधिपति एक सेठ रहता था, उसके रेवती वगैरह तेरह रानियां थीं। इन सबो ने भगवान •महावीर से श्रावक धर्म ग्रहण किया। वहां से बिहार कर प्रभु श्रावस्ती पुरी में आये, वहां पर, नन्दिनीयिता नामक एक गृहस्थ रहता था। इसके "आश्विनी" नामक स्त्री थी। यह बारह करोड़, स्वर्ण मुद्राओं का अधिपति था। इसको भी श्री वीर प्रभु ने सकुटुम्ब श्रावक धर्म में दीक्षित किया। इस प्रकार प्रभु के दस "मुख्य श्रावक" हो गये।
कई स्थानों पर भ्रमण करते हुए प्रभु एक वार पुनः श्रावस्ती.