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________________ २५९ भगवान् महावीर राजा राज्य करता था। और "प्रानन्द" नामक प्रहपति वहां का नगर प्रेष्टि या, उसके "शिवानन्दा" नामक परम रुपवती पत्री थी, वह बारह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का स्वामी था। बीर प्रनु को वहां पधारे हुए जान वह हर्षोसुल हो उनकी वंदना करने को गया, और उपदेश प्रवण किये, पत्रात उसने बारह प्रकार के गृहस्य धमों को प्रनीकार किया। उसके गये पश्चात् उसकी मी शिवानन्दा ने भी श्राकर इन्हीं बारह धमों को ग्रहण किया । इसके पश्चात् प्रभु ने चम्पा नामक नगरी में कुलपतिनामक गृहस्य को उसकी भता नामक पत्नी सहित और काशी नगरी में चुलनीपिता नामक गृहस्य को उसकी श्यामा नामक स्त्री सहित गवक धर्म में दीक्षितकिये। ये दोनों गृहस्य क्रम से अठारह करोड़ और चौबीस करोड़ स्वस मुद्रात्रों के अधिपनि थे। तदनन्तर काशी में सुगदेव को, प्रालम्भिका में चुहावरु को काम्पील्यपुर में फुण्डकोलिक को गृहम्य धर्म में दीतित किया ये सब लोग असंख्य सम्पत्ति के मालिक थे। पलाशपुर नामक नगर में सन्नालपुत्र नामक एक कुम्हार रहता था। यह पुम्दार श्राजीविक-सम्प्रदाय के सस्थापक "गौशाला" का अनुगायी था। उसके अमिमित्रा नामक स्त्री धी। यह वीन करोड़ म्यण मुद्रों का स्वामी था। पलाशपुर के थाहर इसकी मिट्टी के यतनों का वेंचने की पांच सौ दुकानें चलती थीं। एक दिन किसी ने आकर उमसे कहा कि कल प्रात: काल महाया लोक्य पूतिसवन प्रमु यहाँ पर पधारेंगे। शब्दालपुत्र ने इससे यह समना कि जरूर इसने यह कथन मेरे धर्म गुरु गोशाला के विषय में किया है। यह बात सुन वह दूसरे
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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