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मगवान महावीर
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"साध्वी ! तुम पूँठ मत बोलो। तुम्हारे मत के अनुसार जब सारा वस्त्र जल कर राख हो जाय तभी उसे "जला" ऐमा कह सकते हैं। जलते हुए को जल गया कहना यह तो श्री अर्हन्त का वचन है।" यह सुनते ही प्रियदर्शना को शुद्ध बुद्धि उत्पन्न हुई। उसी समय वह वोली "ढङ्क ! तेरा कहना- यथार्थ है। चिरकाल से मेरी बुद्धि नष्ट हो रही थी। तैने मुझे अच्छा वोघ किया । अव मुझे अपने किये का पड़ा पश्चात्ताप है।" ढङ्क ने कहा-"साध्वी ! तुम्हारा हृदय शुद्ध और साफ है, तुम शीघ्र ही वीर प्रभु के पास जाकर इसका पश्चात्ताप कर लो।" यह सुन कर प्रियदर्शना जमालि का साथ छोड़ अपने परिवार सहित वीर प्रभु की शरण में आई। उसके साथ ही साथ जमालि के दूसरे शिष्य भी उसे छोड़ कर भगवान् की शरण में आ गये। क्वल मिथ्यात्व से खदेड़ा हुआ, अकेला जमालि कई वर्षों तक पृथ्वी पर भ्रमण करता रहा । अन्त में एक वार पन्द्रह दिन का अनशन कर वह मृत्यु को प्राप्त हुआ।
उस समय गौतम प्रभु ने भगवान् से पूछा-'हे प्रभु ! जमालि कौन सी गति में गया ?" वीर प्रभु ने कहा-"गौतम ! तपोधन जमालि लावङ्क देवलोक में किग्विपिक देवता हुआ है। वहाँ से भयंकर पांच २ भव नरक, तिर्यंच, और मनुष्य गति में भ्रमण करके निर्वाण को प्राप्त होगा। जो लोग धर्माचार्य का विरोध करते हैं उनकी ऐसीही गति होती है। इस प्रकार उपदेश देकर प्रभु ने वहाँ से अन्यत्र विहार किया। __उस समय अवन्ति नगरी में परम पराक्रमी राजा चण्ड, प्रद्योत राज्य करता था, वह सुन्दर खियों का बड़ा लोलुपी था ।