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________________ २५५ भगवान् महावीर एक दिन वह अपते सामन्तो के साथ राज सभा में बैठा था। उस समय एक प्रसिद्ध चित्रकार ने राजसभा में प्रवेश कर उसका अभिवादन किया। और उपहार स्वरूप एक बड़ो सुन्दर रमणी का मनोहर चित्र उसको भेंट किया। उस चित्र को देखते ही जिा चण्डप्रद्योत ने कहा-"कुशल चित्रकार । तेरा चित्रकौशल सचमुच विधाता के समान है। एसा स्वरूप मानव लोक के अन्तर्गत . कभी देखने मे न आया, इसलिए तेरी की हुई इम चित्र कल्पना को धन्य है, यह सुन चित्रकार ने कहाः "राजन् ! यह केवल कल्पना ही नहीं हैं। इस चित्र में उलिखित रमणी इस समय भी कोशम्बी के राजा शतानिक के अन्तपुर में विद्यमान हैं। इसका नाम मृगावती है। यह मृगाक्षी राजा शतानिक की पटरानी है उसका यथार्थ रूप चित्रित करने में तो विश्वकर्मा भी असमर्थ हैं। मैंने तो उस रूप का किञ्चित अामास मात्र इस चित्र में अंकित किया है। उसका वास्तविक रूप तो वाणी के भी अगोचर है।" इस बात को सुनते ही रमणी लोलुप चण्डप्रद्योत कामान्ध हो गया। उस ममय वह नीति और अनीति के विचार को विलकुल भूल गया। उसने उसी समय कहा कि-"मृग को देखते हुए सिह जिस प्रकार मृगी को पकड़ लेता है, उसी प्रकार शतानिक के देखते देखते में मृगावती को ग्रहण कर लूंगा।" ऐसा विचार कर उसने पहले एक दूत को राजा शतानिक के समीप भेजा। उस दूत ने शतानिक को जाकर कहा-“हे शतानिक राजा! अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत तुम्हे आज्ञा करता है कि मृगावती के समान रन-जो कि देव योग से तुम्हारे समान
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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