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________________ २४५ भगवान् गमवीर की स्तुति की। तब भगवान् ने उन्हें सम्यक्त्व का उपदेश दिया जिसके फल स्वरूप श्रेणिक ने सम्यक्त्व को और अभय कुमार वगैरह ने श्रावक धर्म को ग्रहण किया। देशना समाप्त हो जाने पर सब लोग भगवान् को नमन कर प्रसन्नचित्त से अपने अपने घर गये। घर जाकर श्रेणिक (विम्बसार ) के पुत्र मेवकुमार ने अपनी माता धारिणो देवी और पिता से प्रार्थना की-"मैं अब इस अनन्त दुःखप्रद संसार को देख कर चकित हो गया हूँ। इस कारण मुझे इस दुःख से छूट कर श्रीवीर प्रभु की शरण में जाने दो"। यह सुनते ही राजा और रानी बड़े दुखित हुए, उन्होंने मंयकुमार को कितना ही समझाया पर वह अपनी प्रतिज्ञा से विचलित न हुआ । अन्त मे श्रेणिक ने कहा कि यदि तुमन दीक्षा लेना है। निश्चय किया है, तो कुछ समय तक राज्य सुख भोग लो तत्पश्चात् दीक्षा ले लेना । बहुत आग्रह करने पर मेघागर ने उस बात का खोकार किया। तव राजा ने एक बड़ा उत्सव कर मेवकुमार को सिंहासन पर विठाया। तत्पश्चात् हर्प के आवेश में आकर गजा ने पूछा, "अव तुमे और किस बात को जरूरत है।" मेवकुमार ने कहा-"पिता जी यदि प्राप मुझ पर प्रसन्न हुए हैं तो कृपा कर मुझे दीक्षा ग्रहण करने की आज्ञा दीजिये।" लाचार हो राजा ने मेघकुमार को आज्ञ. दी, तब मेधकुमार ने प्रसन्न चित्त हो वीर प्रभु के पास जा कर दीक्षा ली। दीक्षा की पहली ही रात्रि में मेघकुमार मुनि छोटे बड़े के क्रम से अन्तिम सन्यारे (सोने का स्थान ) पर सोये थे, जिससे
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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