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________________ भगवान् महावीर २४६ बाहर आने जाने वाले तमाम मुनियों के चरण पार वार इनके शरीर से टकराते थे, इससे ये बड़े दुःखी हुए और सोचा कि मेरे वैभव रहित होने ही से ये लोग मेरे ठोकरें मारते जाते हैं। इसलिये मैं तो प्रातःकाल प्रभु की आज्ञा को लेकर यह व्रत छोड़ दूंगा, प्रातःकाल व्रत छोड़ने की इच्छा से ये प्रभु के पास गये। प्रभु ने केवल ज्ञान के द्वारा इनका हार्दिकभाव जान कर कहा "ओ मेघकुमार। संयम के मार से भग्नचित्त होकर तु तेरे पूर्व जन्म को क्यों नहीं याद करता । सुन इससे पहले भव में तू विन्ध्याचल पर्वत पर मेरुप्रभ नामक हाथी था। एक बार वन में भयङ्कर दावानल लगा। उसमें तैने अपने यूथ की रक्षा करने के निमित्त नदी किनारे पर वृक्ष वगैरह उखाड़ कर तीन स्थंडिल बनाए । वन में दावानल को जोर पर देख उससे रक्षा पाने के निमित्त तू स्थंडिलो की ओर गया। पर पहले दो स्थडिल तो तेरे जाने से पूर्व ही मृगादिक जानवरों से भर चुके थे, तब तू , तीसरे स्थंडिल के एक बहुत ही सकीर्ण स्थान में जा कर खड़ा हो गया। वहां खड़े खड़े तूने अपना वदन खुजलाने के निमित्त एक पैर ऊंचा किया, इतने ही में एक भयभीत खरगोश दावानल से रचा पाने के लिए तेरे उस ऊंचे किये हुए पैर के नीचे आ कर बैठ गया। उसकी जान को जोखिम में देख तूने दया हो अपना पैर ज्यो का ज्यों ऊँचा रहने दिया, और तीन पैर के वल ही खड़ा रहा। ढाई दिन के पश्चात् जव दावानल शान्त हुआ और सब छोटे बड़े प्राणी चले गये। तव भूख प्यास से पीड़ित हो तू पानी की ओर दौड़ने लगा। पर बहुत देर तक तीन पैर पर खड़े रहने से तेरा चौथा पैर जमीन पर न टिका। और तू
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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