SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर 7 अवतरणिका बहुत दिनों की बात है-करीब ढाई हजार वर्ष व्यतीत हुए होंगे-जब भारतीय समाज के अंतर्गत एक भय दूर विशृंखला उत्पन्न हो रही थी। वे सब सामाजिक नियम जो समाज को उन्नत बनाये रखने के लिये प्राचीन ऋपियों ने आविष्कृत किये थे नष्ट-भ्रष्ट हो चुके थे। वर्णाश्रम व्यवस्था का वह सुन्दर दृश्य जिसके लिये प्लेटो और एरिम्टोटल के समान प्रसिद्ध दार्शनिक भी तरसते थे, इस काल में बहुत कुछ नष्ट हो चुका था, ब्राह्मण अपने ब्राह्मणत्व को भूल गये थे। स्वार्थ के वशीभूत होकर वे अपनी उन सव सत्ताओं का दुरुपयोग करने लग गये थे जो उन्हें प्राचीन काल से अपनी बहुमूल्य सेवाओं के बदले समाज से कानूनन प्राप्त हुई थी। क्षत्रिय लोग भी ब्राह्मणों के हाथ की कठपुतली बन अपने कर्तव्य से च्युत हो गये थे। समाज का राजदंड अत्याचार के हाथ में जा पड़ा था । सत्ता अहंकार की गुलाम हो गई थी, राज मुकुट अधर्म के सिरपर मण्डित था,समान में त्राहि त्राहि मच गई थी।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy