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भगवान महावीर का प्रादुर्भाव ।
लेखक-कवि पुष्कर
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जब अधर्म का दुखद राज्य होता है जारी। होते हैं अन्याय जगत में निशिदिन भारी ॥ सामाजिक सब रीति-नीतियाँ नस जाती हैं।
अनाचार की वृत्ति हृदय में बस जाती हैं । तब ऐसे सत्पुरुष का, होता झट अवतार है। जो अपने सच्चरित से, हरता पापाचार है॥
भारत में जब सदाचार की गिरी अवस्था । वर्णाश्रम की नहीं रह गई मूल व्यवस्था । नर-पशुओं की फैल रही थी दुर्गुण-सत्ता ।
भ्रष्ट हो रही थी मुनियों की प्रिय नय-मत्ता ॥ महावीर भगवान का, उसी काल मागम हुमा । जिनके तेज-प्रताप से, नष्ट ऊत उधम हुआ ।
पूज्य पिता सिद्धार्थ धन्य ! थीं त्रिशलामाता। वैशाली था जन्म-नगर सव सुख का दाता ।। तीस वर्ष में जगजाल तज हुए तपस्वी।
कर्म-भोग निर्वाण-सुपथ में हुये यशस्वी॥ सदुपदेश दे देश को, पाठ अहिंसा का पढ़ा। अमर हुये इस लोक में, जैन धर्म आगे बढ़ा।
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