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________________ भगवान् महावीर २३२ श्राहार लेकर प्रभु तो अन्यत्र विहार कर गये। पर उसी उद्यान में श्री पार्श्वनाथ स्वामी के केवली शिष्य पधारे हुए थे। उनके पास जाकर वहां के राजा ने तथा दूसरे लोगों ने पूछा, "भगवन् ! नवीन श्रेष्टि और जीर्ण श्रेष्टि इन दोनों में से किसके हिस्से में पुण्य का अधिक भाग आया" केवली ने उत्तर दिया"जीर्ण श्रेष्टि" सब से अधिक पुण्यवान है। लोगों ने पूछा "कैसे ? क्योंकि उसके यहां तो प्रभु ने आहार लिया ही नहीं, प्रभु को आहार देने वाला तो नवीन श्रेष्टि है।" केवली ने कहा"भावों से तो उस जीर्ण श्रेष्टि ने ही प्रभु को पारणा करवाया है और उस भव से उसने अच्युत देव लोक को उपार्जन कर संसार को तोड़ डाला है। यह नवोनशेष्ठि शुद्ध भाव से रहित है। इस कारण इसे इस पारणे का फल इहलोक-सम्बन्धी हो. मिला है। जिस प्रकार कर्तव्य के लिए किया हुआ पुरुषार्थहोन मनोरथ निष्फल होता है उसी प्रकार भावनाहीन क्रिया का फल भी अत्यन्त अल्प होता है। ___यहां से विहार कर प्रभु "सुसुमा पुर" नामक ग्रास मे आये। वहां से भोगपुर, नन्दिग्राम, मेढ़क ग्राम होते हुए प्रभु कौशाम्बी नगरी में आये। ___ कौशाम्बी में उस समय, “शतानिक" नामक राजा राज्य करता था। उसके मृगावती नामक एक रानी थी। वह बड़ी धर्मात्मा और परम श्राविका थी। “शतानिक" राजा के सुगुप्त नामक मंत्री था, जिसकी “नन्दा" नामक एक पत्नी थी। वह भी बड़ी धर्मात्मा और मृगावती की परम सखी थी। उस नगरी में धनावह नामक एक सेठ रहता था। उसके "मूला" नामक स्त्री
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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