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________________ २३३ भगवान् महावीर थी। पोष मास की कृष्ण प्रतिपदा को वीर प्रभु यहां पर आये । उस दिन प्रभु ने भोजन के लिये बड़ा ही कठिन अभि ग्रह धारण किया। ___"कोई सती और सुन्दर राजकुमारी दासीवृति करती हो । जिसके पैर में लोह की वेड़ी पड़ी हो, जिसका सिर मुण्डा हुआ हो, मूखी हो, रुदन कर रही हो। एक पग देहली पर और दूसरा पग बाहर रखे हुए खड़ी हो और सब भिक्षुक उसके यहाँ आकर चले गये हों। ऐसी स्त्री सूपड़े के एक कोने में दर्द रख • कर उनका आहार मुझे करावे तो करूं अन्यथा चिरकाल तक मैं अनाहार रहूँ।" इस प्रकार का अभिग्रह लेकर प्रभु प्रति-दिन गोचरी के समय उच्च नीच गृहों में फिरने लगे। पर कहीं भी उनको अपने अभिग्रह की पूर्णता दिखलाई न दी। इस प्रकार चार मास बीत गये। यह देख कर सब लोगो को बड़ा शोच हुआ। सबों ने मोचा कि अवश्य प्रभु ने कोई कठिन अभिग्रह धारण कर रत्नवा है। सब लोग इस अभिग्रह को जानने की कोशिश करने लगे। राजा, रानी, मत्री, नगर-सेठ आदि सभी बड़े चिन्तित हुए। कोई ज्योतिपियों को बुलाकर यह बात जानने की कोशिश करने लगे, पर सत्र निष्फल हुआ। इसी अवसर पर कुछ समय पूर्व “शतानिक" राजा ने चम्पानारी पर चढ़ाई की थी। चम्पा-पति “दविवाहन" राजा उससे डरकर भाग गया था। तब "शतानिक" राजाने अपनी सेना को श्राज्ञा दी कि जिसको जिस चीज़ की आवश्यकता हो लूट ले। यह सुनते ही सब लोगों ने नगर टूटना प्रारम्भ किया। दधि
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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