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भगवान महावीर और प्रभु की ऐसी स्थिति देख कर उन्होंने सिपाहियों से कहाअरे मूखों तुम क्यों मरने की इच्छा कर रहे हो। ये तो सिद्धार्थ राजा के पुत्र अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर हैं। यह सुनते ही उन लोगों ने डर कर भगवान् को बाहर निकाला और अपनी भूल के लिये क्षमा मांग कर चले गये।
क्रमश भ्रमण करते करते प्रभु चौथा चतुर्मास व्यतीत करने के लिए "पृष्ट चम्पा" नामक नगरी में आये । यहां पर उन्होने चार मास क्षपण (चार मास के उपवास) किया। वहां से चल कर "कृनमहल" नामक प्राम में गये । उस नगर में कई पाखण्डी रहते थे। उनके गहल्ले के मध्य मे एक देवालय था। उनमे उनके कुल देवता की प्रतिमा थी। उसके एक कोने में भगवान कायोत्सर्ग लगा कर स्तम्भ की तरह खड़े हो गये । माघ का मास था । फड़ाके की शीत पड रही थी। आधीरात व्यतीत होने पर वे सब लोग अपने स्त्री बच्चों सहित वहां आये । और मद्य पी पी कर वहां नाचने लगे । यह देख कर गौशाला हस कर बोला "अरे! ये पाखण्डी कौन हैं ? जिनकी स्त्रियां भी इस प्रकार मद्यपान कर नृत्य करती हैं। यह सुनते ही उन सब लोगों ने"गौशाला" को निकाल बाहर किया । अव कड़ाके की शीत के अन्दर "गौशाला" अग सिकोड़ सिकोड़ कर दाँत बजाने लगा। जिससे उन लोगों को दया आ गई और वे पीछे उसे वहां ले
आये । कुछ समय पश्चात् जब उसकी सर्दी दूर हो गई, वह फिर उसी प्रकार वोला, जिससे उन लोगों ने फिर उसे निकाल दिया और कुछ समय पश्चात् उसी प्रकार वापिस उसे ले आये इस प्रकार तीन बार उसे निकाला और वापस लाये, चौथी बार जब
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