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________________ भगवान् महावीर २२४ नमित्त वे समाधि पूर्वक रहते थे। एक दिन "गौशाला" जब मिक्षा वृत्ति के निमित्त ग्राम में गया तब उसने इन रंगीन वखों को धारण करने वाले और पात्रों को रखनेवाले साधुओं को देख कर उनसे पूछा "तुम कौन हो ?" उन्होने कहा कि हम श्री पार्श्वनाथ के निर्ग्रन्थ निगाण्ठ शिष्य हैं। "गौशाला" ने हंसते हंसते कहा कि "क्यो व्यर्थ मिथ्या भाषण करते हो। नाना प्रकार के वस्त्र और पात्रो को रखते हुए भी तुम निम्रन्थ हो? केवल बेट भरने के निमित्त ही शायद इस पाखण्ड की कल्पना की है।" इस प्रकार होते होते उनका वाद बढ़ गया तब क्रोध में आकर "गौशाला" ने कहा कि तुम्हारा उपाश्रय जल जाय, उन्होंने कहा कि तेरे बचनों से हमारा कुछ भी नहीं विगड़ सकता । यह सुन लज्जित हो “गौशाला" भगवान महावीर के समीप आया और उसने कहा कि प्रभो। तुम्हारी निन्दा करने वाले सप्रन्थ साधुओ को मैंने शाप दिया कि तुम्हारा उपाश्रय जल जाय, पर न जला, इसका क्या कारण है ? "सिद्धार्थ" ने उत्तर दिया-"अरे मूर्ख। वे श्री “पार्श्वनाथस्वामी" के शिष्य हैं। तेरेशाप से उनका क्या अनिष्ट हो सकता है। __यहां से रवाना होकर प्रभु 'चोटाक' नामक ग्राम मे आये । वहां पर चोरों को ढूंढने वाले सरकारी मनुष्यो ने प्रभु को और "गौशाला" को भिक्षुक वेषधारी चोर समझ कर पकड़ लिया और उनको बांध कर कुंए में ढकेल दिया, इसी अवसर पर "सोमा" और "जयन्ति" नामक दो साध्वियें उधर आ निकली। इस संवाद को सुन कर उन्होंने अनुमान किया कि कहीं ये साधु अन्तिम तीर्थंकर भगवान् तो नहीं है । यह सोन कर वे वहाँ आई।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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