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________________ भगवान् महावीर २१४ सब से प्रथम भगवान महावीर पर गुवाले का उपसर्ग हुश्रा जिसका वर्णन पहले किया जा चुका है। एक समय भगवान महावीर भ्रमण करते करते "माराक" नामक ग्राम के समीप आये । वहाँ पर "दुई जान्तक" जाति के संन्यासी रहते थे। उन संन्यासियों का कुलपति महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ का बड़ा मित्र था। उसने एक चतुर्मास उसी शान्त स्थान में व्यतीत करने की उनसे प्रार्थना की। ममता रहित होने पर भी महावीर ने उसे योग्य स्थान समझ वहाँ पर रहना स्वीकार किया। उस कुलपनि ने तव ममतावश होकर उनके लिये एक फूस का झोपड़ा वना दिया। वर्षाकाल में पानी बरसने के कारण उस झोपड़ी पर बहुत सा हरा घास जम गया। उसे देख कर ग्राम की गायें घास खाने के लोभ से वहाँ आकर चरने लगी। दूसरे तपस्वियों ने तो अपनी मोपड़ियों के आगे से गायों को भगा दिया पर महावीर बिलकुल निश्चेष्ट रहे । यहां तक कि उन गौओं ने उनकी सारी झोपड़ों को तुण रहित कर दी। यह देख कर कुलपति को बड़ा खेद हुआ, उसने उस विषय में महावीर को कुछ उपदेश दिया, उसके वाक्यों को सुन कर प्रभु ने सोचा कि मेरे कारण इन सब लोगों को खेद होता है, अतः अब मेरा इस स्थान पर रहना ठीक नहीं। उसी समय प्रमुन निन्नाकिंत पाँच अभिग्रह घारण किये। १-अ प्रीति कर स्थान पर कभी न रहना (३) प्रायः मौन धारण करके ही रहना (४) अलि पात्र में भोजन करना। (१) गृहस्थ का विनय नहीं करना। इस प्रकार पांच अभिग्रहधारण करके वे चतुर्मास के पन्द्रह दिन व्यतीत होने पर नियम विरुद्ध होते हुए भी वहां से चल कर "अस्थिक" नामक ग्राम में आये ।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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