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________________ २१५ मगवान् महावीर प्रभु ने वह चतुर्मास वही व्यतीत करना चाहा, पर प्राम के लोगों ने उन्हें रोते हुए कहा कि यहां पर एक यक्ष रहता है। वह यहां पर किसी को नहीं रहने देता। जो कोई हठ करके यहां पर रात रहता है उसे वह बड़ी निर्दयता से मार डालता है। इसलिये आप कृपा करके पास ही के इस दूसरे स्थान पर चतुर्मास निर्गमन कीजिए। पर प्रभु ने उनकी बात को स्वीकार न कर वही रहने की आज्ञामांगी। लाचार दुखित हदयसे उन्होंने उन्हें वहां रहने की श्राज्ञा दी। प्रभु एक कोने में कायोत्सर्ग करके खड़े हो गये। सन्ध्या को उस मन्दिर के पुजारी ने भी उन्हे वहां रहने से मना किया, पर प्रभु ने मौन धारण कर रक्खा था। वे किसी प्रकार वहां से विचलित न हुए। कमशः रात्रि हुई । वह यक्ष मन्दिर में पाया, महावीर को वहां देखते ही वह क्रोध से आग बबूला हो गया, उसने उनको भयभीत करने के निमित्त भयङ्कर अट्टहास किया । वह अट्टहास सारे आकाश में गूंज कर वायु पर नृत्य करने लगा। पर महावीर उससे तनिक भी विचलित न हुए। तत्पश्चात् उसने भयङ्कर हाथी, पिशाच आदि का रूप धर कर महावीर को डराना चाहा, जव वह इन प्रयत्नों में भी असफल हुआ तो भयङ्का सर्प का रूप धारण कर उसने उनको स्थान २ पर जोर से डसना प्रारम्भ किया। पर तपस्या के तेजोमय प्रभाव से उस विप का भी उन पर कुछ असर न हुआ। वे पूर्ववत् अटल रहे। इसके पश्चात् उसने और भी कई प्रकार से उन्हे कष्ट पहुँचाना चाहा। पर जब सब तरह से वह हार गया तो वह बहुत विस्मित हुआ। इन्हे उसने महाशक्तिशाली समझ कर नमस्कार किया और
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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