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________________ २१३ भगवान् महावीर अब उस सवाग सुन्दर शरीर पर बढ़िया राज वखों के स्थान पर दिगम्वरत्व शोभित होने लगा। जो कोमल शरीर आजतक राज्य की विपुल स्मृद्धि के मध्य में पालित हुआ था। और जिसकी तप्त सुवर्ण के ममान ज्योति ने कमी उष्ण समोर का स्पर्श तक नहीं किया था, वही मोहक प्रतिमा आज सयम कफनी से आच्छादित हो गई। संसार के पापों को धो डालने के निमित्त भगवान ने सब पुण्य सामग्रियों का त्याग कर दिया । जिस शरीर की शोभा को समार कीच में फंसे हुए प्राणी अपना सर्वख सममते हैं, उसी को प्रभु ने केश लोच करके विनष्ट कर दी। जिस भोग के क्षणभर के वियोग से ही संसारी लोग कातर हो जाते हैं, उसी भोग को भगवान महावीर ने तिलमात्र खेद किये बिना ही तिलौंजली दे दी। परम सुन्दरी सुशीला पत्नी "यशोदा" प्रिय पुत्री "प्रियदर्शना" जेष्ठबन्धु "नन्दिवर्द्धन" राज्य की अतुल लक्ष्मी इन सवा का त्याग करते हुए उन्हें रंच मात्र भी मोह नहीं हुआ। ___दीक्षा ग्रहण किये पश्चात् उसी समय प्रभु को मन.पर्यय ज्ञान की प्राप्ति हुई । यह दिन ईसा के ५६९ वर्ष पूर्व मार्गशीर्ष फुरण दशमी का था। भगवान् का भ्रमण । भगवान महावीर के भ्रमण का बहुत सा वृतान्त गत मनोवैज्ञानिकखण्ड में दिया जा चुका है। अत: इस स्थान पर उसको पुनवार देने की आवश्यकता न थी। पर कई घटनाएँ ऐसी रह गई हैं जो 'मनोवैज्ञानिक खण्ड' में घट गई है और जिनका दिया जाना यहां आवश्यक है।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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