________________
२११
भगवान महावीर अवतरित हुए हैं। यह हमारे कम सौभाग्य की बात नहीं है। मैं यह भी जानती हूँ कि तुम्हारा निर्माण जगत की रक्षा के निमित्त हुआ है। पर फिर भी हमारा स्नेह प्रधान हृदय पुत्रत्व की भावना को तजने में असमर्थ है। हमारी प्रबल इच्छा है कि हम तुम्हें वधु सहित देखें। इसलिये केवल हमको संतुष्ट करने के निमित्त ही तुम हमारे इस कथन को स्वीकार करो ।
माता के इस नम्र निवेदन को सुन कर महावीर बड़े विचार में पड़े । अन्त में उनका हृदय पसीज गया ।उन्होंने माता पिता को श्राज्ञा को स्वीकार कर "यशोदा" नामक राजकुमारी से विवाह कर लिया। शरीर से गृहवास में होते हुए भी महावीर का हृदय जंगल में था । उदित भोग कमों को वे बिल्कुल उदासीन भाव से भागते थे । जिन महात्माओं का हृदय भोग और योग इन दोनों भावों में समान रूप से रह सकता है, उनका वैराग्य ससार के प्रति रहे हुग द्वैप में से अथवा निराशा मे से प्रकट नहीं होता। वस्तुस्थिति के वास्तविक दर्शन में से ही उनका वैराग्य प्रकट होता है। वे जल के कमल की तरह ससार के अंतर्गत रहते हुए भी उससे विरक्त रहते हैं। उदयवान कर्मों की प्रकृति को तटस्थ भाव से भोग कर उसकी निर्जरा करना और राग द्वेप युक्त वायुमण्डल के मध्य मे भी "स्थित प्रतिज्ञ" रहनाय उनका भीषण व्रत होता है। बर्द्धमान कुमार इसी प्रकार अपना वैवाहिक जीवन व्यतीत करते थे। इस विवाह के
• दिगम्बरी ग्राथ इस बान साथा प्रनिल्न ई यह यात पहले भी लिम्ब चुके हैं। उनके मत से भावान् महावीर आजन्म नपाचारी थे।
-लेखक
-
-
-