________________
भगवान् महावीर
२१० चर्चा अवश्य करवाएंगे। इतना कह कर राजा ने उनके मित्रों को कई बातें समझा बुझा कर उनके पास भेजे । उन लोगोने जाकर बहुत ही प्रेम युक्त शब्दों में वर्द्धमान के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा वर्द्धमान कुमार ने उत्तर में कहा-"तुम हमेशा मेरे साथ रहने वाले हो और मेरे संसार-विरक्त भावों से भी तुम भली भांति परिचित हो, फिर व्यर्थ ही क्यों ऐसा प्रस्ताव सम्मुख रखते हो ?
मित्रों ने कहा-कुमार | हम जानते हैं कि तुम्हारे विचार संसार से विरक्त हैं पर इसके साथ तुम्हारे ये भी विचार हैं कि "माता पिता" की आज्ञा का अलंध्य समझ कर उसका पालन करना चाहिये-इसके अतिरिक्त तुमने हम लोगों की याचना की भी कभी अवहेलना न की। फिर आज एक साथ सवको दुःखी क्यों करते हो?
वर्द्धमान-मेरे मोहग्रस्त मित्रो। तुम्हारा यह आग्रह बहुत खराब है। क्योंकि स्त्री आदि का परिग्रह भव भ्रमण का कारण होता है। मैं तो अब तक दीक्षा भी ग्रहण कर लेता पर इसी एक बात से-कि इससे मेरे माता पिता को वियोग जनित दुख होगा, मैं अब तक रुका हुआ हूँ।
इतने में धीरे धीरे "त्रिशला" रानी ने कमरे में प्रवेश किया, उसको देखते ही "वर्द्धमान" उठ खड़े हुए और कहा-माता! तुम आई यह तो अच्छा हुआ। पर तुम्हारे इतना कष्ट करने का क्या कारण था, मुझे बुलाती तो मै खयं वहा आ जाता ।
• त्रिशला-नन्दन | अनेक प्रकार के शुभ कर्मों के उदय स्वरूप तुम हमारे यहाँ अवतरित हुए हो। जिनके दर्शन को तीनों लोक लालायित रहते हैं, वही हमारे यहां पुत्र रूप से