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________________ १८३ भगवान् महावीर क सत्र हक स्वीकार करते हैं तो फिर 'त्रियो के हकों को क्यों स्वीकार न करें । विशालज्ञानी महावीर इस बात को जानते थे और इसी कारण उन्होने पुरुष और स्त्री के हकों को समान समझा था । श्रस्तु ! आगे के पौराणिक खण्ड मे हम भगवान् महावीर के धर्मप्रचार और उन पर आये हुए उपसगों का वर्णन करते हुए यह बतलाने की कोशिश करेंगे कि उनकी सहनशीलता, उनकी क्षमा और उनको शान्ति कितनी दिव्य थी । भगवान् महावीर का निर्वाण तीस वर्षों तक अपने सदुपदेशों के द्वारा संसार को कल्याणमग सन्देशा देकर बहत्तर वर्ष की अवस्था मे अपने शिष्य सुधर्माचार्य के हाथ में धर्म की सत्ता दे राजगृह के पास पात्रांपुरी नामक स्थान में भगवान् महावीर ने कार्तिक कृष्ण श्रमावास्या को निर्वाण प्राप्त किया। उनके निर्वाणोत्सव में बहुत ही बड़ा उत्सव मनाया गया। जिसका बहुत ही विकृत रूप आज भी भारतवर्ष में "दीपावलि" के नाम से मनाया जाता है। भगवान महावीर का चरित्र Meu is heaven born not the thrall of circumstances and of necessitles, but the victorious subduer, behold ! how he can become the Announcer of himself and of his freedom. (Carlyle) "मनुष्य देवि जन्म का धारक है। वह परिस्थिति और आवश्यक्ताओं का गुलाम नहीं । प्रत्युत उनका विजयी नेता
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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