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भगवान् महावीर
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पान
शिशु हो या स्त्री हो चाहे जो हो गुण का पात्र है वही पूजनीय है ।
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ऐसा मालूम होता है कि उस काल मे समाज के अन्तर्गत शूद्रो ही की तरह स्त्रियों के अधिकारो को भी कुचल दिया गया होगा । सम्भवत: इसी कारण शूद्रों ही की तरह स्त्रियों के लिये भी महावीर को इस प्रकार का नियम बनाना पड़ा होगा । जैन-धर्म पुरुष और स्त्री की आत्मा को समान स्वतन्त्रता देता है । जो लोग यह मानते हैं कि स्त्री को हिन्दू धर्म-शास्त्रों में (Individual liberty ) व्यक्ति स्वातन्त्र्य वे लोग बड़े भ्रम में है । केवल स्त्री और स्वतन्त्रता देकर ही महावीर के उदारहृदय ने बल्कि प्राणी मात्र चर और अचर सव को का देने वाला पहला महापुरुष महावीर था । था जिसने संसार के प्राणी मात्र की और आत्मा की स्वतन्त्रता के निमित्त ही अपने जीवन को विसर्जन कर दिया ।
नही दिया गया है
समान स्वतन्त्रता वह महावीर ही
पुरुष को समान विश्राम न लिया ।
महावीर के आश्रम में जितना दरजा श्रमण का माना जाता था, आर्यिका का भी उतना ही माना जाता था । पुरुष स्त्री के चरित्र की रक्षा के लिए उन्होने कितने ही भिन्न भिन्न आचारो का निर्माण किया था । महावीर जानते थे कि, स्त्रीख और पुरुषत्व केवल कर्मवशात् प्राप्त होता है। लेकिन स्त्री और पुरुष की समान शक्तियां होती हैं । जिस प्रकार एक पुरुष की अपेक्षा दूसरे पुरुष में संयोगवशात् आत्मिकशक्ति मे कमीबेशी हो जाती है। इसी प्रकार स्त्री और पुरुष नामक व्यक्तियों मे कमीबेशी हो जाती है । इसलिये यदि हम पुरुषों की स्वतन्त्रता के