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________________ १८१ मगवान् महावीर ८. अंकापित गौतम गौत्र ५ ६०० श्रमणों का ९. अचल वृत हरितायन गौत्र । एक वृक्ष १०. मेत्रेयाचार्य काण्डीय गौत्र ११. प्रभासाचार्य इस प्रकार महावीर के ग्यारह गणधर नौ वृन्द और ४२०० प्रवण मुख्य थे। इसके सिवाय और बहुत से श्रमण और अजिंकाएँ थी, जिनकी सरन्या क्रम से चौदह हजार और छत्तीस हजार थी। श्रावको की सख्या १५००० थीं, और श्राविकाओ की मंग्व्या ३,१८,००० थी। इस स्थान पर एक बात बड़ी विचारणीय है। कितने ही पाश्चात्य विद्वान प्राचीन भारतवर्ष के लोगों पर यह एक बड़ा आरोप लगाते हैं कि उस समय के शाखो में "खो" को नरक की खानि कहा है। उमे ससार के वन्धन का कारण घतलाया है । हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि हिन्दू धर्म-शास्त्रों में व्यक्ति के जीवन के लिए इस प्रकार की बातें कही गई हैं । पर गृहस्थावस्था के लक्ष्य-बिन्दु से ऐसा कहीं भी नहीं कहा गया है। घल्कि बिना सुयोग्य पत्नी के गृहस्थाश्राम को अधूरा भी बतलाया है। गृहस्थाश्रम के अन्तर्गत स्त्री का उतना ही आसन माना गया है जितना आज कल के पाश्चात्य समाज में माना जाता है। भगवान महावीर और पार्श्वनाथ जो जीवन-आदर्श की अन्तिम सोढ़ा पर विहार कर रहे थे, उनको भी यह बात खटकती थो उन्होंने भी माफ कहा है कि'- . "शिशुत्व बैण्य वा यदस्तु तत्तिष्ठतु तदा । गुणाः पूजा स्थान गुणिपु न च लिग न च वयः"
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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