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भगवान महावीर
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है। वह अपने खातन्त्र्य और व्यक्तित्व को किस प्रकार दुनियां के सन्मुख उपस्थित कर सकता है इस ओर ध्यान दें।"
आज कल के बुद्धि-वादी काल मे मनुष्य का ह्रदय बुद्धिगर्व से इतना अधिक संकीर्ण हो गया है कि वह व्यक्ति को
शक्ति पर विश्वास करने में बहुत हिचकता है । परिस्थितियों के 'बन्धनो को ठोकरों से उड़ाता हुआ और वाधाओं के जाल को काटता हुआ यदि कोई मनुष्य दुनियां मे महानता की ओर अग्रसर होता है तो हम उसके स्वातन्त्र्य बल को स्वीकार कर उसकी ओर पूज्य भावनाएँ प्रकट करने में बड़ी आना कानी करते हैं और एक बड़े दार्शनिक की तरह गम्भीर अावाज में कह देते हैं कि, उसमें कोई नई बात नही । महावीर का जन्म ऐसी परिस्थिति में हुआ था कि जिसमे रह कर वैसी शक्ति प्राप्त करना अत्यन्त आसान थी। अब वह परिस्थिति नष्ट हो गई है। इस कारण अब ऐसे मनुष्यो का उत्पन्न होना भी दुप्कर है। इस प्रकार कह कर बुद्धिवादी मनुष्य अपनी आत्मा को सन्तोष देते हैं। और इसी प्रकार अपने मे पाये जानेवाले कुदरती गुणों को दवा कर आत्मघात करने को तैयार हो जाते हैं। यह आत्मघात आधुनिक काल मे पहले सिरे की बुद्धिमानी और ज्ञान समझा जाता है। भगवान् महावीर देव थे, वे एक राजपुत्र थे। पूर्वभव मे उन्होने अच्छे कर्म किये थे । परिस्थिति उनके अनुकूल थी। कौटुम्बिक सुख उन्हे प्राप्त था। आदि ये सब बातें हमें प्राप्त नहीं हैं। इसीलिए हम उनके समान नहीं हो सकते । यदि वे भी हमारी ही स्थिति में होते तो कदापि इतनी उच्च स्थिति को प्राप्त न करते । इस