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________________ भगवान महावीर १६८ भगवान का उपदेश मनुष्य जाति को श्रवण कराने के निमित्ति जिस समवशरण की रचना की गई थी, वह बहुत ही भव्य था। एक बड़ा लम्बा चौड़ा मण्डप बनाया गया था। उसकी सजावट में किसी प्रकार की त्रुटि न रक्खी गई थी। उसके अन्तर्गत, बाहर भिन्न भिन्न विभाग किये गये थे। जिसके भिन्नभिन्न विभागों में देवता, पुरुष स्त्री और यहाँ तक कि पशु-पक्षियों के बैठने का भी स्थान था । भगवान् एक व्यासपीठ पर स्वर्ण के बनाये कमल पर विराजमान थे, उनके मुख से जो उपदेश ध्वनित होता था, उसे सत्र देवता मनुष्य यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी अपनी अपनी भाषा मे समझते थे। यही उनके भाषण की व्यवस्था थी। इन बातों में सत्य का कितना अंश है। इसका निर्णय करने की यहाँ पर आवश्यकता नहीं, पर इतना अवश्य है कि ये सब बातें एक विशेष प्रकार का अर्थ रखती हैं । पहली विशेषता तो यह थी कि उस सभा में मनुष्य सब समान समझ गये थे। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, सव एक समान भाव से पारस्परिक विद्वेष को भूल कर एक साथ उस उपदेश को सुनने के अधिकारी समझे गये थे। दूसरी विशेषता यह थी कि महावीर के अनन्त व्यक्तित्व के प्रभाव से हिंसक पशु भी अपनी हिंसकवृति को छोड़ कर अपने प्रतिद्वन्दी पशुओं के प्रति प्रेमभाव रखते हुए इस सभा में उपदेश सुनने के इच्छुक थे। इससे मालूम होता है कि भगवान की करुणा प्रवृति इतनी उच्च थी कि उसके दिव्य प्रभाव से हिसक पशुओं ने भी अपनी हिंसकवृति को छोड़ दी थी।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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