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________________ १६७ भगवान् महावीर PO कैवल्य-प्राप्ति इतनी कठिन तपस्या के पश्चात् भगवान को केवलज्ञान अथवा बोधिसत्व की प्राप्ति हुई । इतनी कठिन आंच को सहन करने के पश्चात् ज्ञान स्वर्ण अपनी पूरी दीप्ति के साथ चमकने लगा। भगवान् को सत्य सम्यकज्ञान की प्राप्ति हुई। ससार मे आनन्द छा गया । स्वर्ग भी उत्साहित हो उठा। दुनियां को यदि सब से अधिक इच्छित और सच्चे सुख की प्राप्ति करानेवाली कोई वस्तु है तो वह ज्ञान है, इसी ज्ञान के अभाव से दुनियां अज्ञान के तिमिराच्छन्न गर्भ में गोते लगाती हुई भटकती है। इसी ज्ञान के अभाव के कारण संसार में दुःख तृष्णा और गुलामी के भयङ्कर दृश्य दिखलाई देते हैं । इसी ज्ञान के अभाव से मनुष्य मनुष्य पर जुल्म करता हैप्राणी प्राणी का अहार करता है। इसी ज्ञान के अभाव से संसार में भयङ्कर जीवन कलह के दृश्य देखने को मिलते हैं। अज्ञान ही मनुष्य जाति का परम शत्रु है, और ज्ञान ही उसका सच्चा मित्र है, वही ज्ञान भगवान् महावीर को प्राप्त हुआ और उनके द्वारा संसार में विस्तीर्ण होनेवाला है, यही जान कर ससार सुखी है-मनुष्य जाति हर्षोन्मत्त है। केवल ज्ञान की प्राप्ति के समय में जैन-शास्त्रों मे जिस उत्सव की कल्पना की है। वह चाहे कल्पना ही क्यों न हो । पर बड़ी ही सुन्दर है । उसके अन्तर्गत तत्व-ज्ञान का. रहस्य छिपा हुआ है। उसके अन्तर्गत उदार साम्यवाद का तत्त्व है।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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