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________________ भगवान महावीर निरोध करके वे समाधिस्थ हो गये। उस मार्ग में एक गुवाल अपने दो वैलों को साथ लेकर निकला, उस स्थान पर आते आते उसे किसी आवश्यकीय कार्य का स्मरण हो आया जिससे वह वैलों की रक्षा के निमित्त प्रभु को चेतावनी देकर पला गया । पर प्रभु को ध्यान में थे, उनका ध्यान गुवाल के उस कथन पर अथवा वैलों की ओर विलकुल न गया, और इसलिए उन्होंने उस गुवाल को कुछ भी उत्तर न दिया। इधर गुवाल भी "मौनं सम्मति लक्षणं" यह समझ कर चल दिया। दैवयोग से वैल चरते चरते वहाँ से कुछ दूर निकल गये । बहुत देर पश्चात् वह गुवाल पुन. वहाँ आया, वहाँ आकर उसने देखा कि उन दोनों वैलों का पता नहीं है। उसने भगवान् से बैलों के विषय में पूछा। पर प्रभु पहले ही के समान उस समय भी मौन रहे। उसने वार वार प्रभु से पूछा पर वे उसी अवस्था में मौन रहे। इससे उसे अत्यन्त क्रोध चढ़ आया। उसे उनको ध्यानस्थ अवस्था का रत्ती भर भी भान न था। प्रभु का यह मौन धारण उनके कर्म के उदय में निमित्त रूप हो रहा था। इस प्रसङ्ग पर गुवाल के द्वारा कर्म की फलदात्री सत्ता के उदय का काल आ पहुँचा था, प्रभु के पूर्वभव में किये हुए पापों का फल मिलने का अवसर विल्कुल समीप आ गया था। इस कष्ट की उत्पत्ति का कारण प्रभु ने त्रिपुष्ट वासुदेव के भव में उत्पन्न किया था। इस गुवाल का जीव उस समय त्रिपुष्ट वासुदेव का शैय्यापालक था। एक बार वासुदेव निद्रामग्न होने की तैयारी में थे, उस समय कई गायक उनके पास नाना प्रकार के
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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