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________________ भगवान् महावीर १५६ सङ्गम के विद्या-बल से तुरन्त ही राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला वहाँ आ पहुँचे । त्रिशला ने आते ही महावीर के कन्धे पर हाथ रख कर कहा, "नन्दन | हम लोगों को दुखिया छोड़ कर तुम यहाँ कैसे चले श्राये। देखो तो मैं और तुम्हारे पिता तुम्हारे वियोग में कैसे जर्जित हो गये हैं, उठो लला घर चल कर प्रजा को और अपने माता पिता को सुखी करो।" ये खेल सगम की दृष्टि में या अपनी दृष्टि में चाहे महत पूर्ण हों पर भगवान् महावीर की दृष्टि में तो बिल्कुल तुच्छ थे; क्योकि वे तो जानते थे कि जब तक देव अपनी आयु को पूर्ण नहीं कर लेते, तब तक कही नहीं जा सकते । यह सङ्गम तो क्या-संसार की कोई महाशक्ति भी उन्हें यहाँ नहीं ला सकती। भला इस प्रकार के दिव्य ज्ञानधारी दीर्घतपस्वी महावीर ऐसे ऐन्द्रजालिक प्रलोभनो मे कैसे प्रा सकते थे। बस इस अन्तिम चेष्टा के निष्फल होते ही सगम बिलकुल निराश हो गया। वह भली प्रकार समझ गया कि इन्द्र ने इनकी जितनी प्रशंसा की थी, प्रभु उससे भी अधिक महन् हैं। उनके शरीर और मनका एक भी अंश ऐसा निर्वल नहीं है कि जहाँ से किसी भी प्रकार की कमजोरी प्रविष्ट होकर उनकी तपस्या को भ्रष्ट कर डाले । अतएव वह निराश हो प्रनु की नाना प्रकार की स्तुति करके अपने स्थान पर चला गया । ___ एक बार महावीर विहार करते करते एक नगर के समीपवर्ती बन में आकर ठहरे, वहाँ पर मन वचन और काया का
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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