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भगवान् महावार
साधारण मनुष्य को अध्यात्म विषय का अध्ययन करने में जितनी सुगमता हो सकती है उतनी एक राजकुमार को नहीं मिल सकती। ऊँचे ऊंचे विलास मन्दिरों में अनेक विलास-सामग्रियों के बीच विरले ही महापुरुषों को वैराग्य का ध्यान आता है, ऐसी प्रतिकूल स्थिति के अन्तर्गत रहते हुए भी उनके अन्दर वैराग्य की चिनगारी किस प्रकार प्रवेश कर गई इसी एक बात में महावीर के जीवन का रहस्य छिपा हुआ है, अखण्ड राज्य वैभव के मार्ग मे ऐसा कौनसा सत्य, ऐसा कौनसा सुख, ऐसी कौनसी शान्ति दृष्टि गोचर हुई कि जिसके प्रलोभन में आकर उन्होंने अपार राज लक्ष्मी को, आदर्श मातृप्रेम को, और उस पत्नी-प्रेम को, जहा मे शक्ति की सुन्दर तरगिणी का उद्गम होता है, लात मार कर जगल का रास्ता लिया। एक गरीब मनुष्य जो संसार का भार महन करने में असमर्थ है, जो दोनों समय पूरा भोजन भी नहीं पा सकता, जो ससार के तमाम सुखों से वञ्चित है, दरिद्रता का पाश जिसके गले में पड़ा हुआ है, अत्यन्त दुखों से तग आकर यदि वैराग्य को ग्रहण कर ले तो उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। पर भगवान महावीर की ऐसी स्थिति न थी। उनके प्राण से भी अधिक प्रिय माता थी। सुंदर, सुशील, और सद्गुण-शालिनी पत्नी थी, उदार पिता थे। राज्य था । राज्य-भक्त प्रजा थी और उसके साथ ही साथ अत्यन्त वैभव था । इन सब जातों का त्याग करके मुट्ठी भर धूल की तरह इन सब सामग्रियों को छोड़कर उन्होंने मुनिवृत्ति ग्रहण की इसी आश्चर्य जनक यात में महावीर के जीवन की वास्तविकता छिपी हुई है।
हमारे दुर्भाग्य से हमें भगवान महावीर के बाल्यकाल, शिक्षा