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भगवान् महावीर
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काल, यौवन काल, और दीक्षाकाल का कोई भी प्रामाणिक इतिहास देखने को नहीं मिलता। देखने को केवल ऐसी ऐसी बातें मिलती हैं कि जिन पर आज कल का बुद्धिवादी जमाना बिल्कुल विश्वास नहीं कर सकता । और जिस बात पर विश्वास नही किया जा सकता उसके आदर्श रूप मे किस प्रकार परिणित किया जा सकता है ।
भगवान महावीर का बाल्यकाल ।
भगवान महावीर का वाल्यकाल किस प्रकार व्यतीत हुआ । यह जानने का हमारे पास कोई साधन नहीं है, हम इस बात को नही जानते कि, बालकपन में उनका क्रम विकास किस ढग से हुआ । उनकी बालकपन की चेष्टाएं किस प्रकार की थी। असल मे देखा जाय तो मनुष्य के भविष्य का प्रतिबिम्ब उसके वाल्यजीवन पर पड़ता रहता है । मनुष्य संस्कारों का संग्रह बालकपन मे ही करता है । भविष्य में उनका विकास मात्र होता है, इस लिये किसी भी व्यक्ति का जीवन चरित्र लिखने के पूर्व उसके बाल्यकाल को अध्ययन करना अत्यन्त आवश्यक होता है । पर भगवान महावीर के बाल्यकाल के विषय मे हमारे ग्रन्थ कुछ भी प्रमाणभूत तत्त्व नही देते । वे केवल इतना ही कह कर चुप हैं कि, भगवान, मति, श्रुति, अवधि नामक तीन ज्ञानो को साथ ले कर उत्पन्न हुए थे । वे हमारे सामने केवल एक गढ़ी गढ़ाई प्रतिमा की तरह दिखलाई पड़ने लगते हैं । इसमें हमें यथार्थ सन्तोष नहीं होता । हम मनुष्य हैं, हम हमारे पूज्य नेता को मनुष्य रूप में देखना चाहते हैं । मानवीयता का जो महत्व है,