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________________ ११५ भगवान महावीर हालत में मोक्ष गये। यल्कि महावीर के जीवन का महत्व इसी में है कि, मनुष्य जाति के अन्दर पैदा होकर भी, उस वायुमण्डल में जन्म लेकर भी उन्होंने परम पद को प्राप्त किया। महावीरस्वामी यदि प्रारम्भ में ही अलौकिक थे, और यदि उन्होंने अलौकिकना में से ही अलौकिक पद प्राप्त किया, तो इंसमें उनका फोई वीरत्र प्रदर्शित नहीं होता और न उनका जीवन ही हम लोगों के लिये आदर्श हो सकता है। क्योंकि हम लोग तो लौकिक है। हमें तो लौकिकता में से अलौकिकता प्राप्त करना है। हमें तो नर में नारायण होना है। इसलिए हमारे लिये इसी मनुष्य फा जीवन आदर्श हो सकता है जो हमारी नरह मनुष्य रहा हो और उसी मनुष्यत्व में से जिमने देवत्व प्राप्त किया हो । सारौ मनुष्य जाति को इसी प्रकार के आदर्श की पावश्यकता है। मनुष्य प्रकृति के अन्दर निर्वलता की जो विन्दुएँ हैं, मनुष्य के मनोविकारों में कमजोरी की जो भावनाएँ हैं और भावनाओं फो नष्ट करने के निमित्त जिस पुरुपार्थ की आवश्यकता है वह पुरुषार्थ यदि भगवान महावीर में न था, यदि वे किसी अलौकिक शक्ति के प्राप्त में इतने ऊँचे पद को प्राम हुए तो इसमे उनकी क्या विशेषता ? वह नो प्रकृति का ही काम था, इस प्रकार के महावीर तो मसार के आदर्श नहीं हो सकते ।। लेकिन वाम्नविक बात इस प्रकार को नहीं है, महावीर के विषय में इस प्रकार की धारणा करना हमारी भूल है, उसमें हमागही दाप है। यदि हम मूक्ष्म दृष्टि से महावीर के जीवन फा अध्ययन करें तो हमें मालूम होगा कि, महावीर का जीवन
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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