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भगवान् महावीर
जैन और बौद्धधर्म पर तुलनात्मक दृष्टि
बाह्य दृष्टि से जब हम जैन और बौद्ध इन दोनों धर्मों पर तुलनात्मक दृष्टि डालते हैं, तो हमारे सन्मुख सहजही दो प्रश्न उपस्थित होते हैं।
१-वह कौनसा कारण है जिससे एक ही कारण से-एक एक ही समय में पैदा हुए दो धर्मों मे से एक धर्म तो बहुत ही कम समय मे सर्वव्यापी हो गया और दूसरा न हो सका।
२-वह कौन सा कारण है जिससे एक ही कारण से, एक ही समय में पैदा हुए दो धर्मों में से एक सर्वव्यापी होने बाला धर्म तो समय प्रवाह में भारतवर्ष से वह गया और दूसरा अब तक स्थायी रूप से चल रहा है। ___ ये दोनो ही प्रश्न बड़े महत्वपूर्ण हैं इन्हीं प्रभो में इन धर्मों का बहुत सा रहस्य छिपा हुआ है इस स्थान पर सक्षिप्त रूप से इन दोनों प्रश्नों पर अलग अलग विचार करने का प्रयत्न करते हैं।
बौद्ध और जैनधर्म की अनेक साम्यताओं में से दो साम्यताएँ निम्न लिखित भी हैं।
१-दोनों ही धर्म वाले “त्रिरत्न" शब्द को मानते हैं, बौद्धधर्म वाले बुद्ध, धर्म और संघ को "त्रिरत्न" कहते हैं और जैनधर्म वाले सम्यक् दर्शन, सम्यक् शान, और सम्यक्चरित्र को त्रिरत मानते हैं।
२-दोनों ही धर्म वाले "संघ" शब्द को मानते हैं, जैनियों मे संघ के मुनि, अर्जिका, श्रावक और श्राविका ऐसे चार- भेद