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(१९७) मदिरा जैसी मादक वस्तुनो का विक्रय करना, मनुष्यो मे बेकारी बढाने वाले यत्रो को बेचना, और दुराचारिणी स्त्रियो से दुराचार करवा कर द्रव्योपार्जन करना आदि निन्दध कार्यों तथा व्यापारो से लोभी जीवन को कोई सकोच नही होता है। उसको तो पैसा चाहिए । पैसे के लिए यदि उसे अपनी ही जननी का गला घोटना पड़े तो वह इस दुष्ट कर्म से भी कभी नहीं हिचकिचाता है । स्वार्थ-प्रिय कोणिक ने अपने पिता महाराज बिम्बसार को पिजरे मे डलवा ही दिया था,
और कस ने अपने पिता महाराज उग्रसेन के साथ जो दुर्व्यवहार किया था, उसे कौन नही जानता ?
परिग्रह व्यक्ति को शोषक बनाता है। शोषणवृत्ति का विकास परिग्रह से ही होता है। परिग्रह के हो प्रताप से लोभी जमीदार गरीब किसानो का शोषण करता है, उन पर अत्याचार करता है। मिल और फैक्ट्रियो के लोभी मालिक मज़दूरो को पेट भर अन्न न देकर सव का सव नफा स्वय ही हड़प कर जाता है । लोभी साहूकार दुगना तिगुना सूद लेते है और गरीब लोगो की सम्पत्ति, जायदाद आदि अपने अधिकार मे लाने के लिए सदा चिन्तित रहते है, धूर्त व्यापारी खाने पीने की वस्तुओ मे मिलावट करते है, प्रकृति ने जो वस्तुए शुद्ध तथा निर्दोप ससार को अर्पित की है, मिलावट कर के उन्हे भी दूषित बना डालते है, उचित मूल्य से ज्यादा दाम लेते है, और कम तोलते है, कम नापते है । घूसखोर न्यायाधीश तथा अन्य अधिकारी लोग उचित वेतन पाते हुए भी अपने कर्तव्य-पालन मे प्रमाद करते है, रिश्वत लेते हैं,