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________________ (१४६) विचारणीय है । परमपिता परमात्मा या ईश्वर कर्मफल देने के भट क्यो करता है ? ईश्वर को क्या आवश्यकता पडी है कि वह ससार के अनन्त जीवो के कर्मो का हिसाव रखे और फिर उन्हे दण्ड दे ? क्या ये जीव ईश्वर को कष्ट पहुचाते है ? या उस के साम्राज्य मे कोई विघ्न-बाधा उपस्थित करते है ? राजा चोर को दण्ड देता है, इस मे उस का अपना स्वार्थ होता है । पर ईश्वर का इस ट को खरीदने मे क्या स्वार्थ है ? एक ओर कहा जाता है कि ईश्वर मे कोई विकार नही है, क्रोध, मान, माया आदि जीवनदोषो का उस मे सर्वथा प्रभाव है, फिर वह क्यो इस पचड़े मे पडता है ? क्यो रुद्र बन कर कभी त्रिशूल अपनाता है, क्यो महाप्रलय लाकर कभी ससार का सत्यानाश कर देता है ? ९ - देखा जाता है कि किसी कर्म का फल कर्ता को तुरन्त मिल जाता है और किसी का कुछ समय के बाद मिलता है, किसी का कुछ वर्षो के वाद और किसी का जन्मान्तर मे मिलता है । इस का क्या कारण है ? कर्मफल के भोग मे यह विषमता क्यो देखो जाती है ? क्या ईश्वर के यहा भी रिशवते चलती हैं, जिस ने रिश्वत दे दी उस की मनचाही कर दी और जिस ने न दी उस को बुरी तरह पीस दिया । क्या कारण है, जो किसी को आगे और किसी को पीछे कर्मो का फल भुगताया जाता है । ईश्वर को कर्मफल का प्रदाता मान कर चलते है तो उक्त प्रकार की अन्य भी अनेको आपत्तिया ईश्वर पर आती है, जिन का कोई सन्तोषजनक समाधान नही मिलता है । इसलिए जैन
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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