________________
(१४५) शासन की महत्त्वाकाक्षा को पूर्ण करने के लिए वह ऐसा करता है ? यदि जन-गण-मन का सुधार करना ईश्वर का उद्देश्य है, फिर तो उसे जीवो को दुष्कर्म करने से पूर्व ही रोक देना चाहिए, ताकि लोगो मे पापाचार करने की भावना ही न रहे और यदि ईश्वर यह सब कुछ अपने मनोविनोद के लिए करता है, तथा अपने शासन को बनाए रखने की उसे चिन्ता है, तो हम कहते है कि लोगो के हित की चिन्ता न करके केवल अपने ही मनोविनोद और शासन की भूख को पूर्ण करने का ध्यान रखने वाला व्यक्ति कभी ईश्वर के सिंहासन पर नही बैठ सकता है, उसे ईश्वर कहना हो एक बहुत बड़ी भूल है।।
८-ससार मे अनन्त जीव है और उन मे एकेन्द्रिय जीवो को काय, यह एक, विकलेन्द्रिय जीवो को काय, वचन, ये दो, और शेष सभी पञ्चेन्द्रिय जीवो को काय, वचन, मन, ये तीन कर्म करने के साधन प्राप्त हो रहे है। प्रत्येक जीव इन कर्म-साधनो द्वारा सदा कुछ न कुछ करता ही रहता है। एक जीव की क्षण-क्षण की क्रियाओ का इतिहास लिखना और उन का उस को फल देना यदि असभव नही है, तो कठिन अवश्य है । जब एक-एक जीव के क्षण-क्षण के कार्यों का ब्योरा रखना एव उन का फल देना इतना दुष्कर है तो ससार के अनन्त जीवो की क्षण-क्षण की क्रियाओ का ब्योरा रखना एव उन का फल देना ईश्वर के लिए कितना दुष्कर कार्य होगा? यह स्वत स्पष्ट हो जाता है। इस के अलावा, ससार के अनन्त जीवो के क्षण-क्षण मे किए गए कर्मों के फल देने में लगे रहने से ईश्वर किस तरह शान्त और अपने आनन्दस्वरूप मे कैसे मग्न रह सकता है ? यह भी